Monday, May 25, 2015
देश में यदि सही राजनैतिक विकल्प नहीं है तो उसका निर्माण किया जाना चाहिए !
*मेरी सरकार गरीबों की सरकार- श्री मोदी*
* देहात रोजगार योजना में राज्यों को 6000 से अधिक भुगतान नहीं और योजना में अनेक जिले शामिल नहीं।
* सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं में 66222 करोड़ की कटौती।
* अनुदान निधि में 5900 करोड़ की कटौती।
* राष्ट्रीय कृषि विकास योजना फंड में 7426 करोड़ की कटौती।
* पशु पालन व डेयरी विकास में 685 करोड़ की कटौती।
* प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई में 8152 करोड़ की कटौती। * महिला व बाल विकास बजट में 9858 करोड़ की कटौती।
* अनुसूचित जाती, जन जाती योजनाओं में 20000 करोड़ से अधिक की कटौती।
* पंचायती राज संस्थाओं के बजट में 98.6% की कटौती
* इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, आवास योजनाओं में भारी कटौती
* भविष्य निधि में डाका डालते हुए 5 साल पूर्व निकालने पर खुद के पैसे पर 10 से 30% टैक्स
* पेन्सन योजना 58 की जगह 60 वर्ष में देय कर 2 साल की मेहनत कशों का पैसा डकारने की कवायद। पुरानी सामाजिक योजनाओं में कटौती कर नाम बदल, जनता को प्रचार/फेंक के दम पर बेवकूफ बनाने की कौशिश।
* अब ढाई गुना पैसा पेन्सन फंड में जाएगा पर पूर्व सरकार प्रस्तावित न्यूनतम पेन्सन सिर्फ 1000 ही रहेगी वो भी 60 साल बाद
* किसानो की जमीन जबरन छीनने पर अडिग, किसानो की फसल बर्बादी पर मुवाजे के रूप में बाबाजी का ठुल्लू। किसानो को ऋण पर्सनल लोन से भी महंगा
* खाद, पेस्टिसाइड पर सब्सिडी कटौती ही नहीं समय पर उपलब्ध तक नहीं, समर्थन मुल्य हटाने की योजना
* केंसर, ह्रदय जैसे घातक रोगों की दवा 100 गुना तक महंगी, फ्री दवा योजना बंद
* सर्विस टैक्स 12.38 से 14% पर वास्तविक गरीब अदानी अम्बानी कोर्पोरेट के लिए 5 % कर कम
* डीज़ल भी बाजार के हवाले किया, पूर्व में 119 £ बैरल तेल 71/- लीटर बिकता था अब जब 60£ है तो 73/- बिक रहा सेस में बेतहासा वृद्दि।
तो बोलो गरीबों के मसीहा, 9 लखा सूट धारी, सेल्फी प्रभू, विश्व भ्रमण कारी, फेंक महारती श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी जी की जय। ... न.रुका
अबकी बार...... ???
जितेन्द्र नरुका जी की वाल से
Monday, January 11, 2010
नया वर्ष शुरू हो चूका है। कैसा होगा यह वर्ष इसका आगाज जनवरी माह से ही दिखना शुरू हो गया है। महंगाई सुरसा के मुह की तरह मुह की तरह बढती ही जा रही है। चीनी पचास रूपये किलो हो गयी है, दालें पहले ही १०० रूपये किलो बिक रही थीं । कोढ़ में खाज की इस्थिति तो यह है की सरकारे महंगाई रोकने के कोई उपाय न करके महंगाई के और बढ़ने की आशंका जाता रही है। आम जनता का जीवन बाद से बदतर हो रहा है किन्तु सरकारों को इससे कोई सरोकार नहीं है।
जब भारत आज़ाद हुआ था तब लोगों के मन में बड़ी उम्मीदें थीं। लोगों को लगा की अब हम आजाद हो गए पर ये नहीं मालूम था की जिस कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाई थी वही आगे चलकर जनता को लूटने का कम करेगी और देश को फिर से गुलामी के दौर में ले जायेगी, किन्तु कटु सत्य यही है की कांग्रेस आज यही कर रही है। उसको भारत की नहीं इंडिया की फिक्र है । वो देश की बहुसंख्यक आबादी को नहीं बल्कि चंद पूंजीपतियों को ध्यान में रखकर योजनाये बना रही है ।
Friday, November 27, 2009
मनसे की राजनीती
आज कल महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के लोग लगातार सुर्खियों में बने हुए है। अब सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की ललक इतनी हावी है की हिन्दी जैसे सर्वमान्य भाषा का विरोध करने से पीछे भी राज ठाकरे नही हट रहे है। हिंदू कट्टर पंथ की यह विचारधारा फासीवाद के काफी करीब है जिसमे एक नस्ल विशेष के लोगो के पास ही राजसत्ता रहती है ।
राज ठाकरे सस्ती राजनीती के लिए लोगो में इस कदर बैर भाव भर रहे हैं की सदियों तक लोगो के दिल नही मिलेंगे। वो थी अपने चाचा के रस्ते पर चल रहे है और कांग्रेस भी अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रही है।
हम सबको भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी । हम केवल मुंबई हमले की बरसी ही मनाते रहेंगे या ठाकरे जैसे लोगो को भी सबक सिखाना होगा। हम सब को साम्प्रदायिक सद्भाव की वो मिसाल पेश करनी होगी जिसकी इस समय वाकई में जरूरत है। आज देश को समाजतोड़क लोगो से बचाने की जरूरत है।
Monday, November 2, 2009
वामपंथ और बाजारी मीडिया
आज के हिंदुस्तान अख़बार में आशुतोष जी का लेख पढ़ा । लेख की हेडिंग है की यह सर कलम करने वाली विचारधारा हैमेरा उनसे यही से मतभेद शुरू हो जाता है। उनका पहला बिन्दु है की वामपंथ लोकतंत्र विरोधी है। यही उनका भटकाव है। शायद उन्होंने ठीक से अभी वामपंथ का इतिहास नही पढ़ा है या पढ़ा भी है तो वो ही इतिहास पढ़ा है जो पूंजीवादी या दक्षिण पंथी इतिहासकारों ने लिखा है। सफल लोकतंत्र की मिसाल चीन, वेनेजुएला, चिली सहित कई अन्य देश है, जिन पर भाई आशुतोष को द्रश्तिपात करने की जरूरत है। उन्होंने अपने को वामपंथ से अलग रखने का दूसरा कारन बताया है की यह मानवाधिकारों में यकीन नही रखता, जबकि सच्चाई यह है की वामपंथियों के शासन में कम से कम मर्डर होते है। उसके भी पीछे असली कारन है की वामपंथियों के शासन में हर मुकदमा लिखा जाता है जबकि अन्य लोगो के शासन में तो ऍफ़ आई आर तक नही लिखी जाती। तीसरे कारन के रूप में आसुतोष भाई ने लिखा की ये हिंसा के समर्थक है तो भाई आसू जी क्या हमको आज़ादी यू ही मिल गई थी? बिना हिंसा के गाँधी जी पूरा जीवंन देने के बावजूद यदि क्रन्तिकारी साथी न होती तो क्या हम आज आजाद होते?
वामपंथ या उसके अगुआ लोगो की तुलना हिटलर से करना सिरे से ही बेवकूफी है। हिटलर फासीवादी था वो ऐक धर्म विशेष के लोगो के शासन में यकीन रखता था जबकि वामपंथी साम्यवाद में यकीन रखते है। वो जनता के ८० फीसद हिस्से का प्रतिनिधित्व करते है। वो जनता के हितों में अपना हित देखते है । इसकी जीती तस्वीर चीन है जो हमसे बाद में आजाद हुआ और आज हमसे आगे है। वहां वाम दल का शासन था उन्होंने जनता के हित में काम किया और यहाँ क्या हुआ ये सबके सामने है।
हाँ आशुतोष जी की एक फिक्र जायज है और वो है नक्सलवाद । यह उन तथाकथित वामपंथियों का जमावदा है जो बन्दूक से शासन में यकीन रखते है। येह वामपंथ के नाम पर बदनुमा दाग है। असली मार्क्सवादी या वामपंथी जनता को उसके अधिकारों के लिए जाग्रत करते है, और उनके अधिकारों को दिलाने के लिए उनको लामबंद करते है और फ़िर आन्दोलन करते है।
वामपंथ कोई बाज़ार की वस्तु नही है । इस पूंजीवादी बाज़ार में वामपंथ बिक भी नही सकता। हाँ उसका विरोध जरूर बिक सकता है, उसे ही बेचने की कोसिस की जा रही है। वामपंथ मुनाफा कमाने की वस्तु भी नही है, सो इसका गुणगान भी करना ठीक नही है। ...... लेकिन भाई आशु जी तथ्यों को समझने की भी जरूरत है। वामपंथ जनता के अधिकांश हिस्से को फायदा पंहुचाआने के लिए जो भी सम्भव है, वो करता हैउसमे क्रांति भी शामिल है।
Tuesday, October 20, 2009
चीन और भारतीय मीडिया
मामले की पड़ताल करते समय हमें यह भी ध्यान रखना होगा की इसी तरह वाक युद्घ चलता है और मामला गरमा जाता है तो उस इस्थिति में फायदा किसका होगा। जाहिर है की भारत या चीन का तो फायदा इसमे होना नही है। क्योकि युद्घ होने की दशा में दोनों देशो का नुकसान होना तय है, इसलिए दोनों देशो का नेत्रत्व लगातार शान्ति बनाये हुए है। तो सवाल उठता है की युद्घ होने में फायदा किसका है, तो हमें बिना दिमाग पर जोर डाले पता चल जाएगा की इसमे फायदा अमरीका को होगा। क्योकि अमरीका में लगातार मंदी का माहोल है, उसकी खेती उसके हथियार है, अतः वो अपने हथिया भारत को बेचना चाहता है, लेकिन भारत हथियार क्यो खरीदेगा, इसलिए युद्घ जरूरी है, इसलिए अमरीका लगातार भारत चीन विरोधी ख़बरों को हवा दे रहा है और हमारे कुछ मीडिया के साथी अनजाने में उसके हथियार बने हुए हैं।